कुछ गड़-गड़ाते फुंफकारते, नभ मण्डल में छाये क्रीडा करते घेर लेते नभ के विस्तार को, मेघ मानो प्रकृति से रुष्ट लगते बादल गया है मिज़ाज लगता, इन सन-सनाती हवाओं का आक्रोश से भरे धूल के इन गुबारों, और रुष्ट लगती प्रकृति की फिज़ाओं का संतुलन बिगड़ गया है, प्रकृति के खूबसूरत मिज़ाज का खिलवाड़ जब […]