प्राकृतिक असंतुलन

कुछ गड़-गड़ाते फुंफकारते, नभ मण्डल में छाये क्रीडा करते

घेर लेते नभ के विस्तार को, मेघ मानो प्रकृति से रुष्ट लगते

बादल गया है मिज़ाज लगता, इन सन-सनाती हवाओं का

आक्रोश से भरे धूल के इन गुबारों, और रुष्ट लगती प्रकृति की फिज़ाओं का

संतुलन बिगड़ गया है, प्रकृति के खूबसूरत मिज़ाज का

खिलवाड़ जब से बड़ गया, इंसान के उस वजूद का

जिसने रुलाया प्रकृति के हर उस कण कण को

जीवन दिया और जीना सिखाया जिसने इंसानी फ़ितरत को

इंसान अभी भी मगरूर है, अपनी ताकत के घमंड में चूर है

अहसास मगर करा दिया प्रकृतिक आपदा के कुप्रभाव ने

मानव की तुच्छ बिसात और उसके निकृष्ट अभिमान को